पाठ -1 समय की शुरुआत से

मुख्य बिंदु

56 लाख वर्ष पहले प्रथ्वी पर ऐसे प्राणियों का प्रादुर्भव हुआ जिन्हें हम मानव कह सकते है।
आधुनिक मानव 160000 साल पहले जन्म हुआ।
👉जीवाश्म
👉जीवाश्म किया है
जीवाश्म को अंग्रेजी में फ़ॉसिल कहते हैं। इस शब्द की उत्पत्ति लैटिन शब्द “फ़ॉसिलस” से है, जिसका अर्थ “खोदकर प्राप्त की गई वस्तु” होता है। सामान्य: जीवाश्म शब्द से अतीत काल के भौमिकीय युगों के उन जैव अवशेषों से तात्पर्य है जो भूपर्पटी के अवसादी शैलों में पाए जाते हैं। ये जीवाश्म यह बतलाते हैं कि वे जैव उद्गम के हैं तथा अपने में जैविक प्रमाण रखते हैं।


👉जीवाश्म की परत कैसे बनते हैं
किसी प्राकृतिक घटना के चलते पेड़ पौधे और जीव जंतु धरती के नीचे दब जाते है। लाखो सालो बाद इनके अवशेष जीवाश्मों के रूप में मिलते है। लाखों वर्षो तक इन जीवों का जीवाश्म चट्टानों की परतों में सुरक्षित रहते हैं
जीवों और वनस्पति के जीवाश्म बनने के पीछे एक लम्बी प्रोसेस होती है। लाखो वर्षो की कार्बनिक क्रिया के कारण जीवाश्म का निर्माण होता है। उसी जीव या पेड़ का जीवाश्म बनता है जिसमें कठोर अंग होते है। जिन जीवो में कठोर अंग नही होते है, उनका जीवाश्म नही बन पाता है। ये कठोर अंग कालांतर में पत्थर के हो जाते है। जीवों के कंकाल का सुरक्षित रहना भी अनिवार्य है। एक विशेष परिस्थिति का निर्माण होना जरूरी है जिसमें जीव “शैल या चट्टान” में दब जाए और वहां सुरक्षित रहे।

👉 जीवाश्म का उपयोग
जीवाश्मों के उपयोग निम्नलिखित हैं :
(1) शैलों के सहसंबंध (correlation) में जीवाश्मों का उपयोग – वे जीव जो आज हमें जीवाश्म के रूप में मिलते हैं, किसी भौमकीय युग के किसी निश्चित काल में अवश्य ही रहे होंगे। अत: वे हमारे लए बड़े महत्व के हैं। विलियम स्मिथ और क्यूव्ये महोदय के, जो स्तरित भौमिकी के जन्मदाता हैं, समय से ही यह बात भली भाँति विदित है कि अवसादी शैलों में पाए जानेवाले जीवाश्मों और उनके भौमिकीय स्तंभ (column) के स्थान में एक निश्चित संबंध है। यह भली भाँति पता लग चुका है कि शैलें जितनी अल्पायु होंगी उतना ही उनमें प्राप्त प्राणी विभिन्न प्रकार के और पादपसमुदाय जटिल होगा और वे जितनी दीर्घायु होंगी उतना ही सरल और साधारण उनका जीवाश्मसमुदाय होगा। अत: शैलों का स्तरीय स्थान निश्चय करने में जीवाश्मों का प्रमुख स्थान है और वे बड़े महत्व के सिद्ध हुए हैं।
कैंब्रियनपूर्व के प्राचीन शैलों में जीवाश्म नहीं पाए जाते। अत: जीवाश्मों के अभाव में जीवाश्मों की सहायता से इन शैलों का सहसंबंध नहीं स्थापित किया जाता है। कैंब्रियन से लेकर आज तक के भौमिकीय स्तंभ के समस्त भागों के प्राणी और पादपों का पता लगा लिया गया है। अत: पृथ्वी के किसी भी भाग में इन भागों के सम भागों का पता लगाना अब अपेक्षया सरल है।
(2) जीवाश्म प्राचीन काल के भूगोल के सूचक – पुराभूगोल के अंतर्गत, प्राचीन काल के स्थल और समुद्र का विस्तरण, उस काल की सरिताएँ, झील, मैदान, पर्वत आदि आते हैं। किसी विशेष वातावरण के अनुसार ही जीव अपने को स्थित के अनुकूल कर लेते हैं, यह बात जितनी सच्ची आधुनिक समय में है उतनी ही सच्ची अतीत के भौमिकीय युगों में भी थी। अत: जीवाश्मों की सहायता से हम यह पता लगा सकते हैं कि किस स्थान पर डेल्टा, पर्वत, नदी, समुद्रतट, छिछले अथवा गहरे समुद्र थे, क्योंकि स्थल में रहनेवाले जीव, जलवाले जीवों से और जल में रहनेवाले जीवों में अलवण जलवासी जीव लवण जलवासी जीवों से सर्वथा भिन्न होते हैं।
(3) जीवाश्म पुराजलवायु के सूचक – जीवाश्मों की सहायता से भौमिकीय युगों की जलवायु के विषय में भी किसी सीमा तक अनुमान लगाया जा सकता है। इस दिशा में स्थल पादपों द्वारा प्रदान किए गए प्रमाण विशेष महत्व के होते हैं, क्योंकि उनका विस्तरण समुद्री जीवों की अपेक्षा अधिकांशत: ताप के अनुसार होता है और वे सरलतापूर्वक जलवायु के अनुसार भिन्न भिन्न भागों में पृथक् किए जा सकते हैं। समुद्री जीवों में कुछ का विस्तरण जलवायु की दशाओं के अनुसार होता है, जैसे प्रवाल, जो गरम जलवायु में रहते हैं।
(4) जीवाश्म जीवविकास के सूचक – जीवाश्मों ने जीवविकास के सिद्धांत पर बहुत प्रकाश डाला है और बिना जीवाश्मों की सहायता के जीवविकास का अनुरेखण करना असंभव सा है।
👉प्रजाति
प्रजाति या स्पीसीज(speceis) जीवो का ऐसा समूह होता है जिसके नर मदा मिलकर बच्चे पैदा कर सकता है और उनके बच्चे भी प्रजनन यानी संतान उतपन्न करने में समर्थ होते है।
द ओरिजन ऑफ स्पीसीज़ (प्रजातिओं की उत्पत्ति)
24 नवम्बर 1859 को प्रकाशित चार्ल्स डार्विन की On the Origin of Species (ऑन द ओरिजन ऑफ स्पीसीज़) (हिन्दी अनुवाद: प्रजातियों की उत्पत्ति पर) को विज्ञान में, एक मौलिक वैज्ञानिक साहित्य और क्रम-विकास संबंधी जीव विज्ञान की नींव के रूप में माना जाता है। 1872 के छठे संस्करण का नाम छोटा करके द ओरिजन ऑफ स्पीसीज़ कर दिया गया था।
👉प्राइमेट(350-240) लाख साल पूर्व
स्तनपाई प्राणियों का एक अधिक बड़ा समूह है, इसमें वानर, लंगूर और मानव समिल है।



